चिंतनीय चेतावनी.....
भारत की व्यवस्थापिका द्वारा बनाये गए कानूनों की जनहित, न्यायहित में प्रजातांत्रिक व्यवस्था की आत्मा को जीवित रखते हुए उसकी व्याख्या करने का काम भारत के न्यायपालिका का है परन्तु जब न्यायपालिका अपने धर्म विशेष का पालन करे तो व्यवस्थापिका निजी राजनीतिक स्वार्थसिद्धि हेतु उनमें कूद कर उसकी गरिमा को खंडित करने का कार्य अगर करती है तो उसको ये समझना चाहिए कि ये भारत की प्रजातांत्रिक व्यवस्था का मर्दन है।संसद ने हाल ही में SC/ST Act में किया गया संशोधन, इस गरिमाखंडन और हत्या का प्रत्यक्ष साक्षीय उदहारण है। "शाहबानो वाद" के बाद न्यायपालिका को एक बार फिर धोका देने का कार्य संसद ने किया है जिसकी रक्षा हेतु स्वयं कर्तव्यपरायणता बोध के साथ न्यायपालिका कटिबद्ध है । न्यायपालिका ऐसा सागर है जिसने कभी भी अपना मर्यादा नहीं लांघी पर संसद ने इस कानून में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का जो शीलभंग किया है वो घोर अपमानजनक और निंदनीय है, इसकी कितने ही कड़े लहजे व स्वर-शब्दों में भर्त्सना की जाए, नाकाफी होगी।
एक कोण अगर इसे देख जाए तो ये भारत के संविधान के तहत प्रदान किये गए मूलाधिकारों में से एक "समानता का अधिकार" के भी हरण सरीखा है ।
सत्ता लोलुपता में मत-कोष की राजनीति की अवधारणा का प्रतिपादन करना कदापि उचित नहीं ।
काल न करे कि ये लोलुपता हमारी अखंडता को छिन्न-भिन्न कर हमारे भारतवर्ष को ग्रह-युद्ध की ओर धकेल दे ।
उत्तम चन्देल ऐडवोकेट
सत्र न्यायालय आगरा एवं उच्च न्यायालय इलाहाबाद
9369132435