आम तौर पर ये काफी सुनने में आता है कि वो फलाना व्यक्ति तो बड़ा ही सदा जीवन जीने वाला था, बड़ा ही स्वनुशासित था पर उसे कैंसर हो गया या ट्यूमर हो गया या किसी और बीमारी का वो शिकार हो गया....है न ?
कभी आपने सोच है कि ऐसा क्यूँ कर हो जाता है, ऐसा कैसे हो जाता है ?
नहीं न ! तो आइए एक अनुसंधानित विषय से आपका परिचय करवाता हूँ। तो सुनिये, ये जो हमारा शरीर है न, ये केवल विकास-क्रम का एक भाग है, इसको कैसे विकसित होना है, इसपर हम पूरी तरह से अपना आधिपत्य, अधिकार या नियंत्रण नहीं रख सकते क्यूँकि ये क्रमिक-विकास के एक पड़ाव के रूप में हमको मिला है। जैसे-जैसे ये विकसित होता जाता है ये उस विकास-क्रम के कर्म में आये समस्त कारकों को भी अपने भीतर एक विशेष स्मृति के रूप में समायोजित करता जाता है।
थोड़ा कठिन हो रहा है न समझने में ! तो लाइये इसको सरल करने की कोशिश करते हैं।
आपने अपने बड़ों और बुजुर्गों से कुछ वाक्य तो अवश्य ही सुने होंगे कि सब कर्मों का फल है.... भाग्य में जो लिखा है वही होगा आदि इत्यादि।
ये वाक्य इतने सरल नहीं हैं जितने सरल ये वाक्य प्रतीत होते हैं। आईये इसको समझने की चेष्टा करते हैं। हमने अभी ऊपर क्रमिक-विकास का जिक्र किया था। क्या है ये क्रमिक-विकास ? यही मुख्य रूप से हमारी आज की अवस्था के लिए उत्तरदायी है या यूँ कहें कि मुख्य कारण है।
आज से पहले आप क्या थे, पिछले जन्म में क्या थे, आपने पिछले जन्मों में आपके क्या कर्म थे, ये उन्हीं कर्मों का फल है....मैं ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहता और न ही कहने जा रहा हूँ पर हाँ "कर्मों का फल" ही वो कारण है, जिसके कारण आज ....वो फलाना व्यक्ति किसी विशेष रोग से ग्रस्त है, मेरा आशय इस बात से अवश्य है।
आइये इसको और सरल सरल रूप में समझते हैं !
वो इस प्रकार है कि, हम जो भी कर्म करते है, उसका प्रभाव केवल इस जन्म में ही हम पर नहीं पड़ता या यूँ समझे कि वो केवल इसी जन्म में हमारे साथ खत्म नहीं हो जाता वो हमारे DNA द्वारा हमसे उत्पन्न हमारी पीढ़ी, हमारे वंश में भी जाता है अर्थात अगर हम कोई भी व्यसन-कर्म करते हैं तो ऐसा बिल्कुल नहीं हैं कि उनका प्रभाव हमारे जीवन खत्म होने पर हमारे शरीर के साथ समाप्त हो जाएगा बल्कि क्रमिक-विकास व उनके दौरान एकत्रित की हुई स्मृतियों के संयोजन के चलते उससे उत्पन्न हुई उसकी प्रत्येक अच्छाई या बुराई जो भी है, एक याददाश्त के रूप में हमारे उस DNA में संचित कर ली जाती है और हमारी आगे आने वाली पीढ़ीयों-वंशों तक वो जीवित रहती है, उसके मानस-पटल पर सदा-सदा के लिए अंकित हो जाती है और उसीका रूप दृष्टिगोचर होता है, ...."फलाना व्यक्ति तो बड़ा ही अनुशासित था" की परिणीति के रूप में अपना प्रभाव दिखाती है !
क्यूँकि उस ....फलाने व्यक्ति ने भले ही कोई व्यसन न किया हो पर उसके DNA, उसके जीन्स में उसके DNA के क्रमिक-विकास के दौरान शामिल हुई उसके कभी किसी पुरखे की "व्यसनकर्म-स्मृति जनित जीवाणु के अंश" मौजूद थे जो अब जाकर क्रियाशील हुए, जिनके कारण आज उस ....फलाने अनुशासित व्यक्ति को ये पीड़ा सहन करनी पड़ रही है।
ये बिल्कुल अनुसंधनित है कि हमारा आज का कर्म ही हमारी आने वाली पीढ़ियों के भाग्य है, इनको हम जितनी जल्दी समझ लें हमारे लिए श्रेयस्कर होगा।
आशा करता हूँ कि उपरोक्त विषय व उसका प्रसंग आपको स्पष्ट हुआ होगा।
🙏
आपका: ऐड० उत्तम चन्देल आगरा।